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श्रमण सूक्त
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तवो या दुविहो वुत्तो बाहिरब्भतरो तहा |
बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमम्मत तवो ||
नाणेण जाणई भावे
दसणेण य सद्दहे ।
चरित्रेण निगिण्हाइ
तवेण परिसुज्झई ||
खवेत्ता पुव्वकम्माइ
सजमेण तवेण य ।
सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा
पक्कमति महेसिणो ।।
(उत्त २८ ३४-३६) तप दो प्रकार का कहा है-बाह्य और आभ्यतर । बाह्यतप छह प्रकार का कहा है। इसी प्रकार आभ्यतर-तप भी छह प्रकार का है।
जीव, ज्ञान से पदार्थो को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से निग्रह करता है और तप से शुद्ध होता है ।
सर्वदुखो से मुक्ति पाने का लक्ष्य रखने वाले महर्षि सयम और तप के द्वारा पूर्व कर्मों का क्षय कर सिद्धि को प्राप्त होते हैं।
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