________________
श्रमण सूक्त
३२०
इत्थी वा पुरिसो वा
अलंकिओ वाणलंकिओ वा वि ।
अन्नयरवत्थो वा
अन्नयरेण व वत्येण ।।
अन्नेन विसेसेण
वण भावमणुमुयते उ ।
एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयव्वो ।।
(उत्त ३० : २२, २३)
स्त्री और पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, अमुक वय वाले, अमुक वस्त्र वाले, अमुक विशेष प्रकार की दशा, वर्ण या से 'युक्त दाता से भिक्षा ग्रहण करूंगा-अन्यथा नहीं - इस प्रकार चर्या करने वाले मुनि के भाव से अवमौदर्य तप होता हे ।
भाव
३२२