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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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भीत आदि से स्पर्श न करे, वस्त्र के छह पूर्व और नौ खटक करे और जो कोई प्राणी हो, उसका हाथ पर नौ बार विशोधन (प्रमार्जन) करे।
जो प्रतिलेखना करते समय काम-कथा करता है अथवा जन पद की कथा करता है अथवा प्रत्याख्यान कराता है, दूसरो को पढाता है अथवा स्वय पढता है-वह प्रतिलेखना मे प्रमत्त मुनि पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय-इन छहो कायो का विराधक होता है।
(प्रतिलेखना मे अप्रमत्त मुनि पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय-इन छहो कायो का आराधक होता है।)
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