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श्रमण सूक्त
सिक्त
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३०६
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सच्चा तहेव मोसा य
सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा
वइगुत्ती चउबिहा।। सरंभसमारभे
आरभे य तहेव य। वय पवत्तमाण तु
नियत्तेज्ज जय जई। संरंभमारभे
आरंभम्मि तहेव य! काय पवत्तमाण तु नियत्तेज्ज जयं जई।।
(उत्त २४ : २२, २३, २५) सत्या. मृषा, सत्यामृपा और चौथी असत्यामृषा-इस प्रकार वचन-गुप्ति के चार प्रकार हैं
यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ मे प्रवर्तमान वचन का संयमपूर्वक निवर्तन करे।
सरंम्म, समारम्भ और आरम्भ मे प्रवर्तमान काया का यति संयमपूर्वक निवर्तन करे।
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CON३०६