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अमजबुल
श्रमण सूक्त
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सच्चा तहेव मोसा य
सच्चामोसा तहेव या चउत्थी असच्चमोसा
मणगुत्ती चउविहा।। सरंभसमारभे
आरभे य तहेव य। मण पक्त्तमाण तु नियत्तेज्ज जय जई।।
(उत्त २४
२०, २१)
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सत्या, मृषा, सत्यामृषा और चौथी असत्यामृषा-इस प्रकार मनो-गुप्ति के चार प्रकार हैं
यति सरम्भ, समारम्भ और आरम्भ मे प्रवर्तमान मन का सयमपूर्वक निवर्तन करे।
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