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श्रमण सूक्त
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(SOCश्रमण सूक्त
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ओहोवहोवग्गहिय __ भडग दुविह मुणी। गिण्हतो निक्खिवतो य
पउजेज्ज इम विहि।। चक्खुसा पडिलेहित्ता
पमज्जेज्ज जय जई। आइए निक्खिवेज्जा वा
दुहओ वि समिए सया।। उच्चार पासवण
खेल सिघाणजल्लिय। आहार उवहि देह अन्न वावि तहाविह।।
(उत्त २४ : १३-१५) मुनि ओघ-उपाधि (सामान्य उपकरण) और औपग्रहिकउपाधि विशेष उपकरण) दोनो प्रकार के उपकरणो को लेने और रखने में इस विधि का प्रयोग करे
सदा सम्यक-वृत्त यति दोनो प्रकार के उपकरणो का चक्षु से प्रतिलेखन कर तथा रजोहरण आदि से प्रमार्जन कर सयमपूर्वक उन्हे ले और रखे।
उच्चार, प्रसवण, श्लेष्म, नाक का मैल, मैल, आहार, उपधि, शरीर या उसी प्रकार की दूसरी कोई उत्सर्ग करने योग्य वस्तु १ का उपयुक्त स्थण्डिल मे उत्सर्ग करे।
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