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श्रमण सूक्त
श्रमण मुक्त
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गवेसणाए गहणे य
परिभोगेसणा य जा। आहारोवहिसेज्जाए
एए तिन्नि विसोहए।। उग्गमुप्पायण पढमे
बीए सोहेज्ज एसण। परिभोयमि चउक्कं विसोहेज्ज जयं जई।।
(उत्त. २४ : ११, १२)
आहार, उपधि और शय्या के विषय मे गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा-इन तीनो का विशोधन करे।
यतनाशील यति प्रथम एषणा (गवेषणा-एषणा) में उद्गम और उत्पादन दोनों का शोधन करे। दूसरी एषणा (ग्रहणएषणा) में एषणा (ग्रहण) सम्बन्धी दोषो का शोधन करे और परिमोगैषणा में दोष-चतुष्क (सयोजना, अप्रमाण, अंगार-धूम और कारण) का शोधन करे।
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