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श्रमण सूक्त
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आलवन्ते लवन्ते वा न निसीएज्ज कयाइ वि ।
चइऊणमासण धीरो
जओ जुत्त पडिस्सुणे ||
आसणगओ न पुच्छेज्जा
नेव सेज्जागओ कया ।
आगम्मुक्कुडुओ सन्तो
पुच्छेज्जा पजलीउडो ।।
( उत्त १ २१, २२)
धृतिमान् शिष्य गुरु के साथ आलाप करते ओर प्रश्न पूछते समय कभी भी बेठा न रहे, किन्तु वे जो आदेश दे, उसे आसन को छोडकर सयत मुद्रा मे यत्नपूर्वक स्वीकार करे ।
आसन पर अथवा शय्या पर बैठा-बैठा कभी भी गुरु से कोई बात न पूछे। उनके समीप आकर उकडूं बैठ, हाथ जोडकर पूछे ।
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