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श्रमण सूक्त
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परिजुण्णेहिं वत्थेहिं होक्खामि त्ति अचेलए ।
अदुवा सचेल होक्ख इइ भिक्खू न चितए । ।
एगयाचेलए होइ
सचेले यावि एगया ।
एयं धम्महिय नच्चा
नाणी नो परिदेव । ।
( उत्त २१२, १३)
वस्त्र फट गए हैं इसलिए मैं अचेल हो जाऊगा अथवा वस्त्र मिलने पर फिर मैं सचेल हो जाऊगा-मुनि ऐसा न सोचे । (दीन और हर्ष दोनो प्रकार का भाव न लाए) ।
जिन - कल्पदशा मे अथवा वस्त्र न मिलने पर मुनि अचेलक भी होता है और स्थविर - कल्पदशा मे वह सचेलक भी होता है । अवस्था-भेद के अनुसार इन दोनों (सचेलत्व और अचेलत्व) को यतिधर्म के लिए हितकर जानकर ज्ञानी मुनि वस्त्र न मिलने पर दीन न बने ।
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