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श्रमण सूक्त
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से नूणं मए पुर्व
कम्माणाणफला कडा। जेणाह नाभिजाणामि
पुट्ठो केणइ कण्हुई।। अह पच्छा उइज्जति
कम्माणाणफला कडा। एवमस्सासि अप्पाण नच्चा कम्मविवागयं ।।
(उत्त. २:४०, ४१)
निश्चय ही मैंने पूर्वकाल में अज्ञानरूप-फल देने वाले कर्म किए हैं। उन्हीं के कारण मैं किसी के कुछ पूछे जाने पर भी कुछ नहीं जानता-उत्तर देना नहीं जानता।
पहले किए हुए अज्ञानरूप-फल देनेवाले कर्म पकने के पश्चात् उदय मे आते हैं-इस प्रकार कर्म के विपाक को जानकर मुनि आत्मा को आश्वासन दे।
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