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श्रमण सूक्त
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तओ काले अभिप्पेए सड्ढी तालिसमातिए ।
विणएज्ज लोमहरिस
भेय देहस्स कखए ।।
जब मरण अभिप्रेत हो, उस समय जिस श्रद्धा से मुनिधर्म या संलेखना को स्वीकार किया, वैसी ही श्रद्धा रखने वाला भिक्षु गुरु के समीप कष्टजनित रोमाच को दूर करे, शरीर के भेद की प्रतीक्षा करे - उसकी सार-संभाल न करे ।
(उत्त ५ - ३१)
तप से शरीर को कृष करने की प्रकिया ।
जब धर्म -लाभ की स्थिति न रहे तब आहार के सम्पूर्ण त्याग द्वारा शरीर-विसर्जन करना ।
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