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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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आलओ थीजणाइण्णो
थीकहा य मणोरमा। सथवो चेव नारीणं
तासि इदियदरिसण।। कुइय रुइय गीयं
हसिय भुत्तासियाणि या पणीय भत्तपाण च
अइमाय पाणभोयणं ।। गत्तभूसणमिट्ठ च
कामभोगा य दुज्जया। नरस्सत्तगवेसिस्स विस तालउडं जहा।।
(उत्त १६ ११-१३) १ स्त्रियो से आकीर्ण आलय २ मनोरम स्त्री-कथा, ३ स्त्रियों का परिचय
४ उनके इन्द्रियो को देखना ५ उनके कूजन, रोदन, गीत और ६ भुक्त-भोग और सहावस्थान
हास्य-युक्त शब्दों को सुनना, को याद करना ७ प्रणीत पान-भोजन, ८ मात्रा से अधिक पान-भोजन ६ शरीर को सजाने की इच्छा १० दुर्जय काम-भोग-ये दस
आत्म-गवेषी मनुष्य के लिए तालपुट विष के समान हैं।
और
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