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________________ (8 श्रमण सूक्त श्रमण सूक्त - (२७० - आलओ थीजणाइण्णो थीकहा य मणोरमा। सथवो चेव नारीणं तासि इदियदरिसण।। कुइय रुइय गीयं हसिय भुत्तासियाणि या पणीय भत्तपाण च अइमाय पाणभोयणं ।। गत्तभूसणमिट्ठ च कामभोगा य दुज्जया। नरस्सत्तगवेसिस्स विस तालउडं जहा।। (उत्त १६ ११-१३) १ स्त्रियो से आकीर्ण आलय २ मनोरम स्त्री-कथा, ३ स्त्रियों का परिचय ४ उनके इन्द्रियो को देखना ५ उनके कूजन, रोदन, गीत और ६ भुक्त-भोग और सहावस्थान हास्य-युक्त शब्दों को सुनना, को याद करना ७ प्रणीत पान-भोजन, ८ मात्रा से अधिक पान-भोजन ६ शरीर को सजाने की इच्छा १० दुर्जय काम-भोग-ये दस आत्म-गवेषी मनुष्य के लिए तालपुट विष के समान हैं। और २७०
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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