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श्रमण सूक्त
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श्रमण सूक्त ।
(२७१
दुज्जए कामभोगे य
निच्चसो परिवज्जए। सकट्ठाणाणि सवाणि वज्जेज्जा पणिहाणव।।
(उत्त १६
१४)
एकाग्रचित्त वाला मुनि दुर्जय काम-मोगो और ब्रह्मचर्य मे शका उत्पन्न करने वाले पूर्वोक्त सभी स्थानो का वर्जन करे।
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