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श्रमण सूक्त
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कुसीललिंग इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता असंजए सजयलप्पमाणे
चिणिघायमागच्छइ से चिरं पि ॥ 1 (उत्त. २० : ४३)
जो कुशील - वैश और ऋषि-ध्वज (रजोहरण आदि मुनि चिन्हो ) को धारण कर उनके द्वारा जीविका चलाता है, असयत होते हुए भी अपने आपको सयत कहता है, वह चिरकाल तक विनाश को प्राप्त करता है ।
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