________________
ANO
श्रमण सूक्त 4G
२६६
-
निव्वाणं ति अबाहं ति
सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं
ज चरंति महेसिणो।। तं ठाणं सासयं वासं
लोगग्गंमि दुरारुह। ज संपत्ता न सोयंति भवोहंतकरा मुणी।।
(उत्त २३
-
-
८३, ८४)
जो निर्वाण है, जो अबाध, सिद्धि, लोकाग्र, क्षेम, शिव और अनावाध है, जिसे महान् की एषणा करने वाले प्राप्त करते
-
भव-प्रवाह का अन्त करने वाले मुनि जिसे प्राप्त कर शोक से मुक्त हो जाते हैं, जो लोक के शिखर मे शाश्वतरूप से अवस्थित है, जहा पहच पाना कठिन है, उसे मैं स्थान कहता हू।
-