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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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रहनेमी अहं भद्दे
सुरूवे । चारुभासिणि। मम भयाहि सुयणू !
न ते पीला भविस्सई।। एहि ता भुजिमो भोए
माणुस्सं खु सुदुल्लह। भुत्तभोगा तओ पच्छा जिणमग्ग चरिस्सिमो।।
(उत्त २२ ३७, ३८)
काम-विहल रथनेमि ने राजीमती से कहा-"भद्रे | मैं रथनेमि हू। सुरूपे । चारुभाषिणि । तू मुझे स्वीकार कर। सुतनु | तुझे कोई पीडा नहीं होगी।"
आहम भोग भोगे। निश्चित ही मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है। मुक्त-भोगी हो, फिर हम जिन-मार्ग पर चलेगे।
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