________________
श्रमण सूक्त
(२८७
तमतमेणेव उ से असीले
सया दुही विप्परियासुवेइ। सधावई नरगतिरिक्खजोणिं मोण विराहेत्तु असाहुरूवे।।
(उत्त २० . ४६)
Meam
-
वह शील-रहित साधु अपने तीव्र अज्ञान से सतत दुखी होकर विपर्यास को प्राप्त हो जाता है। वह असाधु-प्रकृति वाला मुनि धर्म की विराधना कर नरक ओर तिर्यग्योनि मे आता-जाता रहता है।