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श्रमण सूक्त
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जे के इमे पव्वइए
निदासीले पगामसो। भोच्चा पेच्चा सुह सुवइ
पावसमणि त्ति वुच्चई।। आयरियउवज्झाएहि
सुय विणय च गाहिए। ते चेव खिसई बाले
पावसमणि त्ति वुच्चई।। आयरियउवज्झायोण
सम्म नो पडितप्पड़। अप्पीडिपूयए थद्धे पावसमणि त्ति वुच्चई।।
(उत्त १७ ३-५) जो प्रव्रजित होकर बार-बार नींद लेता है, खा-पी कर आराम से लेट जाता है, वह पाप-श्रमण कहलाता है।
जिन आचार्य और उपाध्याय ने श्रुत और विनय सिखाया उन्हीं की निन्दा करता है, वह विवेक-विकल भिक्षु पाप-श्रमण कहलाता है।
जो आचार्य और उपाध्याय के कार्यो की सम्यक् प्रकार से चिन्ता नहीं करता, उनकी सेवा नहीं करता, जो बडो का सम्मान नहीं करता, जो अभिमानी होता है, वह पाप-अमण कहलाता है।
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