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श्रमण सूक्त
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पडिलेहेइ पमत्ते - अवउज्झइ पायकबल। पडिलेहणाअणाउत्ते
पावसमणि त्ति वुच्चई। पडिलेहेइ पमत्ते
से किचि हु निसामिया। गुरुपरिभावए निच्च __ पावसमणि त्ति वुच्चई। बहुमाई पमुहरे
थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। असविभागी अचियत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई।
(उत्त १७ . ६-११) जो असावधानी से प्रतिलेखन करता है, जो पाद-कम्बल को जहा-कहीं रख देता है, इस प्रकार जो प्रतिलेखना में असावधान होता है, वह पाप-प्रमण कहलाता है। ___जो कुछ भी बातचीत हो रही हो उसे सुनकर प्रतिलेखना मे असावधानी करने लगता है.जो गुरु का तिरस्कार करता है, शिक्षा देने पर उनके सामने बोलने लगता है, वह पाप-प्रमण कहलाता है।
जो बहुत कपटी, वाचाल, अभिमानी, लालची, इन्द्रिय और नन पर नियंत्रण न रखने वाला, भक्त-पान आदि का सविभाग न करने वाला और गुरु आदि से प्रेम न रखने वाला होता है, वह पाप-प्रमण कहलाता है।
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