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Soश्रमण सूक्त ।
श्रमण सूक्त
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कह धीरो अहेऊहि
उम्मत्तो व्व महि चरे ? एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा।।
(उत्त १८
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ये भरत आदि शूर और दृढ पराक्रमशाली राजा दूसरे धर्म-शासनो से जैन-शासन मे विशेषता पाकर यहीं प्रव्रजित हुए तो फिर धीर पुरुष एकान्त-दृष्टिमय अहेतुवादो के द्वारा उन्मत्त की तरह कैसे पृथ्वी पर विचरण करे ?