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श्रमण सूक्त
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नमी नमेइ अप्पाणं
सक्ख सक्केण चोइओ ।
चइऊण गेह वइदेही
सामणे पज्जुवडिओ | |
एवं करेति सबुद्धा
पंडिया पवियक्खणा ।
विणियट्टति भोगेसु
जहा से नमी रायरिसि ।।
(उत्त. ६ : ६१, ६२ )
नमि राजर्षि ने अपनी आत्मा को नमा लिया, संयम के प्रति समर्पित कर दिया। साक्षात् देवेन्द्र के द्वारा प्रेरित होने पर भी वे धर्म से विचलित नहीं हुए और गृह और वैदेही (मिथिला) को त्यागकर श्रामण्य में उपस्थित हो गये ।
संबुद्ध, पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष इसी प्रकार करते है - वे भोगों से निवृत्त होते हैं जैसे कि नमि राजर्षि हुए।
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