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श्रमण सूक्त
(२२०
छद निरोहेण उवेइ मोक्खं
आसे जहा सिक्खियवम्मधारी। पुव्बाइ वासाई चरप्पमत्तो तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्ख ।।
(उत्त ४ ८)
शिक्षित शिक्षक के अधीन रहा हुआ) और तनुत्राणधारी अश्व जैसे रण का पार पा जाता है, वैसे ही स्वच्छन्दता का निरोध करने वाला मुनि ससार का पार पा जाता है। पूर्व जीवन मे जो अप्रमत्त होकर विचरण करता है, वह उस अप्रमत्त-विहार से शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त होता है।
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