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श्रमण सूक्त
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निरटुगम्मि विरओ ___मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि
धम्मं कल्लाण पावग।। तवोवहाणमादाय
पडिमं पडिवज्जओ। एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई।
(उत्त. २:४२. ४३)
मै मैथुन से निवृत्त हुआ, इन्द्रिय और मन का मैंने संवरण किया-यह सब निरर्थक है। क्योंकि धर्म कल्याणकारी है या पापकारी-यह मैं साक्षात् नहीं जानता।
तपस्या और उपधान को स्वीकार करता हूं, प्रतिमा का पालन करता हूँ, इस प्रकार विशेष चर्या से विहरण करने पर भी मेरा छद्म (ज्ञान का आवरण) निवर्तित नहीं हो रहा है-ऐसा चिन्तन न करे।
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