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श्रमण सूक्त
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नत्थि नूगं परे लोए
इड्ढी वावि तवस्सिणो। अदुवा वचिओ मि त्ति __ इइ भिक्खू न चिंतए।। अभू जिणा अस्थि जिणा
अदुवावि भविस्सई। मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिंतए।।
(उत्त. २. ४४, ४५)
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निश्चय ही परलोक नहीं है, तपस्वी की ऋद्धि भी नहीं है, अथवा मैं ठगा गया हूं-मिक्षु ऐसा चिन्तन न करे।
जिन हुए थे, जिन हैं और जिन होगे-ऐसा जो कहते हैं वे झूठ बोलते हैं-भिक्षु ऐसा चिन्तन न करे।
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