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श्रमण सूक्त
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(२०८
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उच्चावयाहिं सेज्जाहि
तवस्सी भिक्खु थामव। नाइवेल विहन्नेज्जा
पावदिट्ठी विहन्नई। पइरिक्कुवस्सय लद्ध
कल्लाण अदु पावग। किमेगराय करिस्सइ एव तत्यऽहियासए।।
(उत्त २ . २२, २३)
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तपस्वी और प्राणवान् भिक्षु उत्कृष्ट या निकृष्ट उपाश्रय को पाकर मर्यादा का अतिक्रमण न करे (हर्ष या शोक न लाए)। जो पाप-दृष्टि होता है, वह विहत हो जाता है (हर्ष या शोक से आक्रान्त हो जाता है)।
प्रतिरिक्त (एकान्त) उपाश्रय-भले फिर वह सुन्दर हो या असुन्दर-को पाकर “एक रात मे क्या हो जाना है-ऐसा सोचकर रहे, जो भी सुख-दुख हो उसे सहन करे।
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