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श्रमण सूक्त
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अक्कोसेज्ज परे भिक्खु न तेसिं पडिसजले ।
सरसो होइ बालाण
तम्हा भिक्खू न संजले ।
सोच्चाण फरुसा भासा
दारुणा गामकटगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा
न ताओ मणसीकरे ।।
( उत्त २. २४, २५)
कोई मनुष्य भिक्षु को गाली दे तो वह उसके प्रति क्रोध न करे। क्रोध करने वाला भिक्षु बालको (अज्ञानियों) के सदृश हो जाता है, इसलिए भिक्षु क्रोध न करे।
मुनि परुष, दारुण और ग्राम कटक (कर्ण - कटुक) भाषा को सुनकर मौन रहता हुआ उसकी उपेक्षा करे, उसे मन मे
न लाए।
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