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श्रमण सूक्त
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सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्मूले व एगओ ।
अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए पर |
तत्थ से चिट्ठमाणस्स उवसग्गाभिधारए | सकामाओ न गच्छेज्जा उत्ता अन्नमासणं ।।
( उत्त २:२०, २१)
राग-द्वेष रहित मुनि चपलताओ का वर्जन करता हुआ श्मशान, शून्यगृह अथवा वृक्ष के मूल मे बैठे। दूसरों को त्रास न दे !
वहा बैठे हुए उसे उपसर्ग प्राप्त हो तो वह यह चिन्तन करे - 'ये मेरा क्या अनिष्ट करेंगे ?" किन्तु अपकार की शका से डरकर वहा से उठ दूसरे स्थान पर न जाए ।
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