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श्रमण सूक्त
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हओ न सजले भिक्खू
मणं पि न पओसए। तितिक्ख परम नच्चा
भिक्खुधम्म विचितए।। समण सजय दत
हणेज्जा कोइ कत्थई। नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए।।
(उत्त २ : २६. २७)
पीटे जाने पर भी मुनि कोध न करे, मन में भी द्वेष न लाए। तितिक्षा को परम जानकर मुनि-धर्म का चिन्तन करे।
Pan
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सयत और दान्त श्रमण को कोई कहीं पीटे तो वह आत्मा का नाश नहीं होता-ऐसा चिन्तन करे, पर प्रतिशोध की भावना न लाए।
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