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[_ श्रमण सूक्त
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परेसु घासमेसेज्जा
भौयणे परिणिहिए। लद्धे पिडे अलद्धे वा
नाणुतप्पेज्ज सजए।। अज्जेवाहं न लभामि
अवि लाभो सुए सिया। जो एव पडिसंविक्खे अलाभो त न तज्जए।।
(उत्त २ - ३०, ३१) ।
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गृहस्थो के घर भोजन तैयार हो जाने पर मुनि उसकी एषणा करे। आहार थोडा मिलने या न मिलने पर सयमी मुनि अनुताप न करे।
आज मुझे भिक्षा नहीं मिली, परन्तु सभव है कल मिल जाय-जो इस प्रकार सोचता है, उसे अलाभ नहीं सताता।
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