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________________ श्रमण सूक्त २०३ परिजुण्णेहिं वत्थेहिं होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेल होक्ख इइ भिक्खू न चितए । । एगयाचेलए होइ सचेले यावि एगया । एयं धम्महिय नच्चा नाणी नो परिदेव । । ( उत्त २१२, १३) वस्त्र फट गए हैं इसलिए मैं अचेल हो जाऊगा अथवा वस्त्र मिलने पर फिर मैं सचेल हो जाऊगा-मुनि ऐसा न सोचे । (दीन और हर्ष दोनो प्रकार का भाव न लाए) । जिन - कल्पदशा मे अथवा वस्त्र न मिलने पर मुनि अचेलक भी होता है और स्थविर - कल्पदशा मे वह सचेलक भी होता है । अवस्था-भेद के अनुसार इन दोनों (सचेलत्व और अचेलत्व) को यतिधर्म के लिए हितकर जानकर ज्ञानी मुनि वस्त्र न मिलने पर दीन न बने । २०३
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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