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श्रमण सूक्त
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परिवाडीए न चिट्ठेज्जा भिक्खू दत्तेसणं चरे ।
पडिरूवेण एसित्ता
मियं कालेण भक्खए ||
नाइदूरमणासन्ने
नन्नेसिं चक्खुफासओ ।
एगो चिट्ठेज्ज भत्तट्ठा
लंघिया तं नइक्कमे ||
(उत्त १ ३२, ३३)
भिक्षु परिपाटी (पंक्ति) मे खडा न रहे। गृहस्थ द्वारा दिए हुए आहार की एषणा करे। प्रतिरूप (मुनि के वेष ) मे एषणा कर यथासमय मित आहार करे ।
पहले से ही अन्य भिक्षु खडे हो तो उनसे अति दूर या अति समीप खडा न रहे और देने वाले गृहस्थो की दृष्टि के सामने भी न रहे। किन्तु अकेला (भिक्षुओ और दाता -- दोनो की दृष्टि से बचकर ) खड़ा रहे। भिक्षुओ को लाघकर भक्तपान लेने के लिए न जाए।
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