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श्रमण सूक्त
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श्रमण सूक्त
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दिगिछापरिगए देहे
तवस्सी भिक्खु थामव। न छिंदे न छिदावए
न पए न पयावए।। कालीपव्वगसकासे
किसे धमणिसंतए। मायण्णे असणपाणस्स अदीणमणसो चरे।।
(उत्त २ - २, ३)
Brunese
देह में क्षुधा व्याप्त होने पर तपस्वी और प्राणवान् भिक्षु फल आदि का छेदन न करे, न कराए। उन्हें न पकाए और न पकवाए।
शरीर के अग भूख से सूखकर काकजघा नामक तृण जेसे दुर्वल हो जाए, शरीर कृप हो जाए, धमनियो का ढाचा भर रह जाए तो भी आहार-पानी की मर्यादा को जाननेवाला साधु अदीनभाव से विहरण करे।
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