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श्रमण सूक्त
तओ पुट्ठो पिवासाए
दोगुछी लज्जसजए। सीओदग न सेविज्जा
वियडस्सेसण चरे।। छिन्नावाएसु पंथेसु
आउरे सुपिवासिए। परिसुक्कमुहेदीणे तं तितिखे परीसह।।
(उत्त २
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४, ५)
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अहिंसक या करुणाशील लज्जावान् सयमी साधु प्यास से पीडित होने पर सचित्त पानी का सेवन न करे, किन्तु प्रासुक जल की एषणा करे।
निर्जन मार्ग में जाते समय प्यास से अत्यन्त आकुल हो जाने पर, मुंह सूख जाने पर भी साधु अदीनभाव से प्यास के परीषह को सहन करे।
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