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श्रमण सूक्त
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अमण सूत्र
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(२००
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चरत विरय लूह
सीय फुसइ एगया। नाइवेल मुणी गच्छे
सोच्चाण जिणसासण।। न मे निवारण अस्थि
छवित्ताण न विज्जई। अह तु अग्गि सेवामि इइ भिक्खू न चितए।।
(उत्त २:६,७)
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विचरते हुए, विरत और रुक्ष शरीर वाले साधु को शीत ऋतु मे सर्दी सताती है। फिर भी वह जिन-शासन को सुनकर (आगम के उपदेश को ध्यान मे रखकर) स्वाध्याय आदि की वेला (अथवा मर्यादा) का अतिक्रमण न करे।। ___ शीत से प्रताडित होने पर मुनि ऐसा न सोचे-मेरे पास शीत-निवारक घर आदि नहीं है और छवित्राण (वस्त्र, कम्बल आदि) भी नहीं है, इसलिए मै अग्नि का सेवन करू।