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________________ श्रमण सूक्त (9) अमण सूत्र - - (२०० - - - चरत विरय लूह सीय फुसइ एगया। नाइवेल मुणी गच्छे सोच्चाण जिणसासण।। न मे निवारण अस्थि छवित्ताण न विज्जई। अह तु अग्गि सेवामि इइ भिक्खू न चितए।। (उत्त २:६,७) - विचरते हुए, विरत और रुक्ष शरीर वाले साधु को शीत ऋतु मे सर्दी सताती है। फिर भी वह जिन-शासन को सुनकर (आगम के उपदेश को ध्यान मे रखकर) स्वाध्याय आदि की वेला (अथवा मर्यादा) का अतिक्रमण न करे।। ___ शीत से प्रताडित होने पर मुनि ऐसा न सोचे-मेरे पास शीत-निवारक घर आदि नहीं है और छवित्राण (वस्त्र, कम्बल आदि) भी नहीं है, इसलिए मै अग्नि का सेवन करू।
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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