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श्रमण सूक्त
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न पक्खओ न पुरओ
नेव किच्चाण पिट्टओ। न जुजे ऊरुणा ऊरु
सयणे नो पडिस्सुणे।।
नेव पल्हत्थिय कुज्जा
पक्खपिण्ड व सजए। पाए पसारिए वावि न चिठे गुरुणन्तिए।।
(उत्त १ १८, १६)
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आचार्यों के बराबर न बैठे। आगे और पीछे भी न बैठे। उनके उरु से अपना उरु सटाकर न बैठे। बिछौने पर बैठा हुआ ही उनके आदेश को स्वीकार न करे, किन्तु उसे छोडकर स्वीकार करे।
सयमी मुनि गुरु के समीप पलथी लगाकर (घुटनो और जधाओ के चारो ओर वस्त्र बांधकर) न बैठे। पक्ष-पिण्ड कर (दोनो हाथो से घुटनो और साथल को वाधकर) तथा पैरो को फेलाकर न बैठे।
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