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श्रमण सूक्त
पडिम पडिवज्जिया मसाणे
नो भायए भयभेरवाइ दिस्स। विविहगुणतवोरए य निच्च ___ न सरीर चाभिकखई जे स भिक्खू।। असइ वोसट्टचत्तदेहे
अक्कुट्टे व हए व लूसिए वा। पुढवि समे मणी हवेज्जा अनियाणे अकोउहल्ले य जे स भिक्खू।।
(दस १० १२, १३)
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जो श्मशान मे प्रतिमा को ग्रहण कर, अत्यन्त भयानक दृश्यो को देखकर नहीं डरता, जो विविध गुणो और तपो मे रत होता है, जो शरीर की आकाक्षा नहीं करता-वह भिक्षु है।
जो मुनि बार-बार देह का व्युत्सर्ग और त्याग करता है जो आक्रोश-गाली देने, पीटने और काटने पर पृथ्वी के समान सर्वसह होता है, जो निदान नहीं करता जो कुतूहल नहीं करता-वह भिक्षु है।
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