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अषण शुल
श्रमण सूक्त
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(१०८
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अट्ठ सुहुमाइ पेहाए
जाइ जाणित्तु सजए। दयाहिगारी भूएसु
आस चिट्ठ सएहि वा।। सिणेह पुप्फसुहुम च
पाणुत्तिग तहेव य। पणग बीय हरिय च
अडसुहुम च अट्ठम।। ऐवमेयाणि जाणित्ता
सव्वभावेण सजए। अप्पमत्तो जए निच्च सविदियसमाहिए।।
(दस ८ १३, १५, १६) सयमी मुनि आठ प्रकार के सूक्ष्म (शरीर वाले जीवो) को देखकर बैठे, खडा हो और सोए। इन सूक्ष्म शरीर वाले जीवो को जानने पर ही कोई सब जीवो की दया का अधिकारी होता है।
स्नेह, पुष्प, प्राण उत्तिड्ग, काई, बीज, हरित और अण्ड-ये आठ पकार के सूक्ष्म हैं।
सब इन्द्रियो से समाहित साधु इस प्रकार इन सूक्ष्म जीवों को सब प्रकार से जानकर अप्रमत्त-भाव से सदा यतना करे।
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