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५, ६, ९१. )
धगद्दारे पत्तेयसरी रदव्ववग्गणा
( ७३
चरिमसमए वे उव्वियपरमाणुपोग्गलपुंजो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेढीए असंखेज्जदिभागो । तं कथं परिच्छिज्जदि त्ति वृत्ते बाहिरवग्गणाए पंचण्णं सरीराणं वृत्तपदे सप्पा बहुआदो सुत्तादो । तं जहा- सव्वत्थोवं ओरालियसरीरस्स पदेसगं । वे उव्वियसरीरस्स पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । आहारसरीरस्स पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । तेयासरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि * अनंतगुणो सिद्धाणमणंतिम भागो । कम्मइयसरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो । एवे गुणगारा कुदो सिद्धा ? अविरुद्धारवणादो |
पढमसमयसजोगिस्स ओरालिय सरीरविस्सासुवचयपुंजादो चरिमसमयणेरइयस्स वे उब्विय सरोरविस्सा सुवचयपुंजो असंखेज्जगुणो । कुदो एदं णव्वदे ? बाहिरवग्गणाए पंचणं सरीराणं विस्सासुवचयस्स भणिदप्पाबहुगसुत्तादो । तं जहा - ओरालियस रीरस्स जहण्णस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ थोवो । तस्सेव जहण्णयस्स जिनके औदारिकशरीर परमाणु पुद्गलपुञ्जसे नारकीके अन्तिम समय में वैक्रियिक परमाणुपुद्गल पुञ्ज असंख्यातगुणा होता है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग गुणकार है ।
शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान -- बाह्य वर्गणा अनुयोगद्वार में पाँच शरीरोंके कहे गए प्रदेश अल्पबहुत्व सूत्र जाना जाता है यथा - औदारिकशरीरके प्रदेशाग्र सबसे स्तोक हैं । इनसे वैक्रियिकशरीर के प्रदेशाग्र असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इनसे आहारकशरीरके प्रदेशाग्र असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग गुणकार है । इनसे तैजसशरीरके प्रदेशाग्र अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धों का अनन्तवां भाग गुणकार हैं । इनसे कार्मणशरीर के प्रदेशाग्र अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंका अनन्तवां भाग गुणकार है ।
शंका -- ये गुणकार किस प्रमाणसे सिद्ध हैं ?
समाधान --- अविरुद्ध आचार्योंके वचनसे सिद्ध हैं ।
प्रथम समयवर्ती सयोगी जिनके औदारिकशरीर के विस्रसोपचय पुञ्जसे अन्तिम समयवर्ती नारकी के वैक्रियिकशरीरका विस्रसोपचय पुञ्ज असंख्यातगुणा है ।
शंका -- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान -- बाह्य वर्गणा अनुयोगद्वार में पाँच शरीरोंके विस्र सोपचयके कहे गए अल्पबहुत्व सूत्र से जाना जाता है- यथा - जघन्य औदारिकशरीरका जघन्य पदमें जघन्य विस्रसोपचय सबसे
ता० प्रती ' भवसिद्धिएहि ' इति पाठः ।
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