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५, ६, ४९० ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा
(४२७ ___जहा इदरेसि सरीराणं जहण्णववादजोगम्मि चेव एगसमयपबद्धं घेत्तण जहण्ण. सामित्तं दिण्ण तहा तेयासरीरस्स किण्ण दिज्जदे ? ण, तत्थ पुव्वसंचिदसमयपबद्धाणं संभवेण तेयासरीरस्स जहण्णभावाणववत्तीदो। उवरि जहण्णएयंताणुवड्ढीए वड्डमा णस्स पदेसवड्ढी चेव होदि तदो एयंताणवडिअद्धाए अभंतरे कथं जहण्णसामित्तं दिज्जदे ? ण एस दोसो, एयंताणवडिजोगेण आगच्छमाणपदेसग्गादो परिणामजोगेणागदसमयपबद्धाणं गलमाणाणमसंखेज्जगुणत्तुवलंभादो। जदि एवं तो सुहमणिगोदजीवअपज्जत्तं मोत्तण अण्णेसिमेयंताणवड्ढीए जहण्णसामित्तं किण्ण दिज्जदे ? ण, णणेसि जहण्णएयंताणुवड्डिजोगेहि सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जहण्णएयंताणवड्डिजोगाणमसंखेज्जगणहीणत्तुवलंभादो। किं च सण्णिचिदियपज्जत्तएसु तेजइयसरीरणोकम्मउक्कस्सहिदी छावद्धिसागरोवममेत्ता, सुहमेइंदिएसु पुण अंत्तोमुत्तमेत्ता, अणंतगुणही. णकसायत्तादो। पंचिदियसमयपबद्धहितो सुहमेइंदियसमयपबद्धा असंखेज्जगणहीणा असंखेज्जगुणहीणजोगत्तादो । तेण सुहमणिगोदेसु* पंचिदियसमयपबद्ध गालिय तत्थ संचिदसमयपबद्धे परिणामजोगेणागदे अंतोमहुत्तमेते सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्तएयंताणु
शंका-- जिस प्रकार इतर शरीरोंका जघन्य उपपादयोगमें ही एक समयप्रबद्धको ग्रहण कर जघन्य स्वामित्व दिया है उस प्रकार तैजसशरीरका क्यों नहीं दिया जाता ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, वहाँ पर पूर्वसंचित समयप्रबद्ध सम्भव होने से तैजसशरीरका जघन्यपना नहीं बन सकता ।
शंका-- ऊपर जघन्य एकान्तानुवद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होनेवाले जीवके प्रदेशवृद्धि ही होती है, इसलिए एकान्तानुवृद्धिके कालके भीतर जघन्य स्वामित्व कसे दिया जा सकता है ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, एकान्तानुवृद्धि योगके द्वारा आनेवाले प्रदेशाग्रसे परिणामयोगसे आये हुए समयप्रबद्धोंके गलनेवाले प्रदेशाग्र असंख्यातगुणे उपलब्ध होते हैं।
__ शंका-- यदि ऐसा है तो सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकको छोडकर अन्य जीवोंके एकान्तानुवद्धिके द्वारा जघन्य स्वामित्व क्यों नहीं दिया जाता?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, अन्य जीवोंके जघन्य एकान्तानुवृद्धि योगसे सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीवके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणे हीन उपलब्ध होते हैं। दूसरे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें तैजसशरीर नोकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागरप्रमाण होती है परन्तु सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होती है, क्योंकि, उनके अनन्तगुणी हीन कषाय पाई जाती है । तथ पञ्चेन्द्रिय जीवके समयप्रबद्धसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके समयप्रबद्ध असंख्यातगुणे हीन होते हैं, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके असंख्यातगुणा हीन योग पाया जाता है, इसलिए सूक्ष्म निगोद जीवोंमें पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धोंकों गलाकर वहाँ परिणामयोगसे आये हुए अन्तर्मुहूर्तप्रमाण संचित हुए समयप्रबद्धोंको सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवके एकान्तानुवृद्धि योगकालके भीतर गलाकर एकान्तानुवृद्धियोगसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण समय
*ता. का. प्रत्योः '-अद्धाणं अब्भंतरे' इति पाठः। * ता० प्रतो । अणंतगणहीणकसायत्तादो 1 तेण सहमणिगोदेसु ' इति पाठः ।
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