Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 510
________________ ५, ६, ६०० ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया. ( ४७७ उक्कस्सपदेण उक्कस्सओ णिरंतरवक्कमणकालो विसेसाहिओ । ५९७। केत्तियमेत्तेण? आवलियाए असंखेज्जविभागमेतेण । जहण्णपदेणसांतरणिरंतरवक्कमणसवजहण्णकालो विसेसाहिओ । ५९८। केत्तियमेतेण? णिरंतरवक्कमणकालविसेसेण परिहीणजहण्णसांतरवक्कमणकालमत्तेण । सो पुण आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तो विसेसो होदि। उक्कस्सपर्वण सांतरणिरंतरवक्कमणकालो विसेसाहिओ ।५९९। केत्तियमेत्तेण ? जहण्णवक्कमणकाले उक्कस्सवक्कमणकाल म्मि सोहिदे सुद्धसेसमेत्तेण । सम्वत्थोवो सांतरवक्कमणकालविसेसो ॥६०० ।। बिदयकंडयप्पहुडि जाव आवलियाए अखेसंज्जविभागमेत्तवक्कमणकंडयाणं कालकलावो सांतरवक्कमणकालो णाम । सो जहण्णओ वि अत्थि उक्कस्सओ वि अत्थि। तत्थ जदण्णे उक्कस्सादो सोहिदे सुद्धसेसो सांतरवक्कमणकालविसेसो णाम। सो थोवो। उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा निरन्तर उपक्रमण काल विशेष अधिक है। ५९७ । । कितना अधिक है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है। जघन्य पदकी अपेक्षा सान्तर-निरन्तर उपक्रमण सबसे जघन्य काल विशेष अधिक है ॥ ५९८ ॥ कितना अधिक है ? निरन्तर उपक्रमण काल विशेषसे हीन जघन्य सान्तर उपक्रमण कालका जितना प्रमाण है उतना अधिक है। और वह विशेष आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा सान्तर निरन्तर उपक्रमणकाल विशेष अधिक है। ५९९ । कितना अधिक है। उत्कृष्ट उपक्रमणकालमेंसे जघन्य उपक्रमणकालके कम करने पर जो शेष रहे उतना अधिक है। सान्तर उपक्रमणकालविशेष सबसे स्तोक है । ६०० । द्वितीय काण्डकसे लेकर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण उपक्रमण काण्डकोंके कालकलापको सान्तर उपक्रमण काल कहते हैं। वह जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। वहाँ उत्कृष्ट में से जघन्यको कम करने पर जो शेष रहे वह सान्तर उपक्रमण कालविशेष कहलाता है। वह स्तोक है। * अ० का० प्रत्योः 'जहण्णपदेण ' इति पाठो नास्ति। * अ० प्रती · जहण्णेण ' इति पाठ: 1 Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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