Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 564
________________ ५, ६, ६८४ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५३१ जिल्लेवणटाणाणि आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्ताणि । एत्थ एगा वि गुणहाणी त्थि । कुदो? सुत्ते गुणहाणिपमाणपरूवणाभावादो । तदो जवमझं गंतूण बावरणिगोदजीवपज्जत्तयाणं णिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ।। ६८४ ।। उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि अंतोमहुत्तमुवरि गंतूण सुहमणिगोदसव्वजहण्णणिल्ले. वणट्टाणादो हेढा आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तमोसरिदूण बादरणिगोदपज्जत्तजीवा चदुण्णं पज्जत्तीणं णिवत्तया थोवा। तदुवरिमसमए णिवत्तया विसेसाहिया। एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण गच्छंति जाव आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तजिल्लेवणटाणाणि त्ति । ताधे सुहमणिगोदपज्जत्तसव्वजहण्णणिल्लेवणट्टाणेण बादरणिगोदपज्जत्तपिल्लेवणट्ठाणं सरिसं होदि। तदुवरिमसमए बादरणिगोदपज्जत्तजीवा चदुण्णं पज्जत्तीणं णिवत्तया विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण गच्छंति जाव सुहमणिगोदपज्जत्तजवमज्झं ति। तदुवरिमसमए बादरणिगोदपज्जत्ता चदुग्णं पज्जत्तीणं णिवत्तया विसेसाहिया । एवं विसेसाहिय-विसेसाहियकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपिल्लेवणटाणाणि उवरि गंतूण बादरणिगोदपज्जत्ताणं जवमज्झं होदि । तदुवरि विसेसहीणा विसेसहीणा होदूण गच्छंति जाव सुहमणिगोद प्राप्त होनेतक विशेष हीन विशेष हीन होकर जाते हैं। चार पर्याप्तियोंके यवमध्यके अधस्तन और उपरिम निर्लेपनस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। यहाँ पर एक भी गुणहानि नहीं है, क्योंकि, सूत्र में गुणहानिके प्रमाणका कथन नहीं किया है । उसके बाद यवमध्य जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्वत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ।। ६८४ ।। उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्महुर्त ऊपर जाकर सूक्ष्म निगोदोंके सबसे जघन्य निर्वत्तिस्थानसे नीचे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण सरककर चार पर्याप्तियोंके निर्वत्तक बादर निगोद पर्याप्त जीव थोडे हैं। उससे उपरिम समयमें निर्वत्तक जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान जाने तक निर्वत्तक जीव विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जाते हैं। तब जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके सबसे जघन्य निर्लेपनके साथ बादर निगोद पर्याप्त जीवोंका निर्लेपनस्थान समान होता है। उससे उपरिम समयमें चार पर्याप्तियोंके निर्वत्तक बादर निगोद पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार सूक्ष्म निगोद पर्याप्त यवमध्यके प्राप्त होने तक विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जाते हैं। उससे उपरिम समयमें चार पर्याप्तियोंके निर्वत्तक बादर निगोद पर्याप्त जीव विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेष अधिक विशेष अधिकके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान ऊपर जाकर बादर निगोद पर्याप्तकोंका यवमध्य होता है। उससे ऊपर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंके उत्कृष्ट निर्लेपमस्थान प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष हीन होकर जाते हैं। उससे ऊपर विशेष हीन क्रमसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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