Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 585
________________ ५५२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ७५१ दव्वाणि घेत्तूण सच्चमणत्ताए मोसमणत्ताए सच्चमोसमणत्ताए असच्चमोसमणत्ताए परिणामेदूण परिणमंति जीवा ताणि दवाणि मणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७५१ ॥ मणदव्यवग्गणा चउविहा- सच्मणपाओग्गा मोसमणपाओग्गा सच्चमोसमणपाओग्गा असच्चमोसमणपाओग्गा चेदि । मणदव्ववग्गणाए चउत्रिहत्तं कुदो णवदे? मणदव्यवग्गणादो णिप्पज्जमाणदव्वमगस चउविहभावण्णहाणववत्तीदो। सेसं सुगम। मणदव्ववग्गणाणमवरिमगहणव्ववगणा णाम।। ७५२ ॥ अगहणवव्ववग्गणा णाम का ॥ ७५३ ।। अगहणदव्ववग्गणा मणदव्वमविच्छिदार कम्मइयदव्वं ण पावदि ताणं दवाणमंतरे अगहणदववग्गणा णाम ॥ ७५४ ॥ एवाणि वि सुत्ताणि सुगमाणि । अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि कम्मइयदव्ववग्गणा णाम ७५५। सत्यमन, मोषमन, सत्यमोषमन और असत्यमोषमनरूपसे परिणमा कर जीव परिणमन करते हैं उन द्रव्योंकी मनोद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । ७५१ । __ मनोद्रव्यवर्गणा चार प्रकारकी है-- सत्यमनप्रायोग्य, मोषमनप्रायोग्य, सत्यमोषमनप्रायोग्य और असत्यमोषमनप्रायोग्य । शंका-- मनोद्रव्यवर्गणा चार प्रकारकी है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- मनोद्रव्यवर्गणासे उत्पन्न होनेवाला द्रव्यमन चार प्रकारका अन्यथा बन नहीं सकता है इससे जाना जाता है कि मनोद्रव्यवर्गणा चार प्रकारकी होती है । शेष कथन सुगम है। मनोद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है । ७५२ । अग्रहणद्रव्यवर्गणा क्या है । ७५३ । अग्रहणद्रव्यवर्गणा मनोद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर कार्मणद्रव्यको नहीं प्राप्त होती है, अतः इन दोनों द्रव्योंके मध्यमें जो होती है उसको अग्रहणद्रव्यवर्गणी संज्ञा है । ७५४। यह सूत्र भी सुगम है। अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर कार्मणद्रव्यवर्गणा होती है । ७५५ । ४ का० प्रती - मधिच्छिदा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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