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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ७९५
को गणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो।
वेउव्वियसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ ।। ७९५ ॥
को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो।
__ओरालियसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ ॥ ७९६ ॥
को गुणगारो? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। __एवमोगाहणप्पाबहुए समत्ते बंधणिज्ज* समत्तं होदि ।
जं तं बंधविहाणं तं चउन्विहं-पयडिबंधो ट्ठिदिबंधो अणुभागबंधो पदेसबंधो चेदि ॥ ७९७ ॥
एदेसि चदुषणं बंधाणं विहाणं भूदबलिभडारएण महाबंधे सप्पवंचेण लिहिदं ति अम्मेहि एत्थ ण लिहिवं । तदो सयले महाबंधे एत्थ परूविदे बंधविहाणं समप्पदि।
एवं बंधणअणुयोगद्दारं समत्तं ।
गुणकार क्या है ? अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । वैक्रियिकशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ॥७९५॥ गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । औदारिकशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ॥७९६।। गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है ।
इसप्रकार अवगाहना अल्पबहुत्वके समाप्त होने पर
बन्धनोय अनुयोगद्वार समाप्त होता है। जो बन्धविधान है वह चार प्रकारका है- प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध ।। ७९७ ॥
इन चारों बन्धोंका विधान भूतबलि भट्टारकने महाबन्ध में विस्तारके साथ लिखा है, इसलिए हमने यहाँ पर नहीं लिखा है । इसलिए सकल महाबन्धके यहाँ पर कथन करने पर बन्धविधान समाप्त होता है।
इसप्रकार बन्धन अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
* का०प्रती ' -णप्पाबहुए सु वुत्ते बंधणिज्जं ' इति पाठः ।
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