Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 596
________________ ( ५६३ बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया वग्गणाए ओगाहणप्पत्तीदो। मणदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए* असंखेज्जगुणाओ ॥ ७९१ ॥ को गणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो। घणंगुलभागहारादो असंखेज्जगुणहीणा कथमतगणहीणवग्गणाणमोगाहणा असंखेज्जगुणा होज्ज ? ण एस दोसो, घणागारेण द्विवलोहगोलियाए ओगाहणादो थोवपदेसस्स फेणपुंजस्स ओगाहणाए बहुत्तुवलंभादो । एवमत्थपदमुरि सव्वत्थ वत्तत्वं । भासादविवग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्ज*गुणाओ ॥७९२॥ को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेजदिमागो। .. तेजासरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ। ७९३ । को गणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो । कुदो एसो णव्वदे । अविरुद्धाइरियवयणादो। आहारसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ७९४। अवगाहना उत्पन्न होती है। मनोद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ॥७९१॥ गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शंका- अनन्तगुणी हीन वर्गणाओंकी घनांगुलके भागहारसे असंख्यातगुणी हीन अवगाहना असंख्यातगुणी कैसे हो सकती है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, घनाकाररूपसे स्थित लोहकी गोलाकी अवगाहनासे स्तोक प्रदेशवाले फेनपुंजकी अवगाहना बहुत उपलब्ध होती है । यह अर्थपद ऊपर सर्वत्र कहना चाहिए। भाषाद्रव्यवणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ।।७९२।। गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । तेजसशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ॥७९३।। गुणकार क्या है ? अगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- अविरुद्ध आचार्य वचनसे जाना जाता है । आहारकशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ॥७९४॥ * ता० प्रती'-वग्गणाए (ओ) ओगाहणाएकाप्रती -वग्गणाए ओगाहणाए 'इति पाठ । *ता०प्रतो'-धग्गणाए (ओ) ओगाहणाओ (ए) असंखेज्ज-' इति पाठ।1 ४ का०प्रती '-वग्गणाए ओगाहणाए' इति पाठः। ता० प्रती' ओगाहणाओ (ए) असंखेज्जगणाओ ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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