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बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया वग्गणाए ओगाहणप्पत्तीदो।
मणदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए* असंखेज्जगुणाओ ॥ ७९१ ॥
को गणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो। घणंगुलभागहारादो असंखेज्जगुणहीणा कथमतगणहीणवग्गणाणमोगाहणा असंखेज्जगुणा होज्ज ? ण एस दोसो, घणागारेण द्विवलोहगोलियाए ओगाहणादो थोवपदेसस्स फेणपुंजस्स ओगाहणाए बहुत्तुवलंभादो । एवमत्थपदमुरि सव्वत्थ वत्तत्वं ।
भासादविवग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्ज*गुणाओ ॥७९२॥ को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेजदिमागो। .. तेजासरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ। ७९३ ।
को गणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जविभागो । कुदो एसो णव्वदे । अविरुद्धाइरियवयणादो।
आहारसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ७९४।
अवगाहना उत्पन्न होती है।
मनोद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ॥७९१॥ गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है।
शंका- अनन्तगुणी हीन वर्गणाओंकी घनांगुलके भागहारसे असंख्यातगुणी हीन अवगाहना असंख्यातगुणी कैसे हो सकती है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, घनाकाररूपसे स्थित लोहकी गोलाकी अवगाहनासे स्तोक प्रदेशवाले फेनपुंजकी अवगाहना बहुत उपलब्ध होती है ।
यह अर्थपद ऊपर सर्वत्र कहना चाहिए। भाषाद्रव्यवणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ।।७९२।।
गुणकार क्या है ? अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । तेजसशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ॥७९३।। गुणकार क्या है ? अगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- अविरुद्ध आचार्य वचनसे जाना जाता है । आहारकशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा असंख्यातगणी हैं ॥७९४॥
* ता० प्रती'-वग्गणाए (ओ) ओगाहणाएकाप्रती -वग्गणाए ओगाहणाए 'इति पाठ । *ता०प्रतो'-धग्गणाए (ओ) ओगाहणाओ (ए) असंखेज्ज-' इति पाठ।1 ४ का०प्रती '-वग्गणाए ओगाहणाए' इति पाठः। ता० प्रती' ओगाहणाओ (ए) असंखेज्जगणाओ ' इति पाठः।
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