Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 595
________________ ५६२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ७८९ तम्हि चेव समए तेणेव जोगेण तेजासरीरदब्ववग्गणादो तेजासरीरटुमागच्छ - माणवग्गणाओ पदेसग्गेण अणंतगणाओ। कुदो ? साभावियादो । को गणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो । भासा-मण-कम्मइयसरीरदव्ववग्गणाओ पदेसठ्ठदाए अणंतगुणाओ ।। ७८९ ॥ तम्हि चेव समए तेणेव जोगेण भासावरगणादो भासापज्जाएण परिणममाणवग्गणाओ पदेसग्गेण अणंतगणाओ। तम्हि चेव समए तेणेव जोगेण मणदव्ववागणादो दव्वमणटुमागच्छमाणवग्गणाओ पदेसग्गेण अणंतगणाओ । तम्हि चेव समए तेणेव जोगेण कम्मइयदव्यवग्गणादो अढण्णं कम्माणमागच्छमाणवग्गणाओ पदेसग्गेण अणंतगुणाओ। सव्वत्थ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धागमणंतभागो। एवं पदेसअप्पाबहुअं समत्तं । ओग्गाहणअप्पाबहुए ति सम्वत्थोवाओ कम्मइयसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए॥ ७९० ॥ कुदो ? एगम्हि घणंगुले अंगुलस्स असंखेज्जदिमागेण खंडिदे एगकम्मइय - उसी समयमें उसी योगके द्वारा तैजसशरीरद्रव्यवर्गणाओंमेंसे तैजसशरीरके लिए आनेवालो वर्गणायें प्रदेशाग्रकी अपेक्षा अनन्तगुणी होती हैं, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । भाषाद्रव्यवर्गणायें मनोद्रव्यवर्गणायें और कार्मणशरीरद्रव्यवर्गणायें प्रवेशार्थता की अपेक्षा अनन्तगुणी हैं । ७८९।।। ____ उसी समयमें उसी योगसे भाषावर्गणाओं में से भाषारूप पर्यायसे परिणमन करनेवाली वर्गणायें प्रदेशाग्रकी अपेक्षा अनन्तगणी होती हैं। उसी समय में उसी योगसे मनोद्रव्यवर्गणाओंमेंसे द्रव्यमनके लिए आनेवाली वर्गणायें प्रदेशाग्रकी अपेक्षा अनन्तगणी होती है । उसी समय में उसी योगसे कार्मणद्रव्यवर्गणाओंमेंसे आठों कर्मों के लिए आनेवाली वर्गणायें प्रदेशाग्रकी अपेक्षा अनन्तगुणी होती हैं । सर्वत्र गुणकार अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण होता है। इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। अवगाहनाअल्पबहुत्व- कार्मणशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाको अपेक्षा सबसे स्तोक हैं ॥७९०॥ क्योंकि, एक घनांगुल में अंगुलके असंख्यातवें भागका भाग देने पर एक कार्मणवर्गणाकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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