Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 578
________________ ५, ६, ७२७ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५४५ किमगहणपाओग्गाओ ।। ७२३ ॥ सुगममेदं। अगहणपाओग्गाओ ।। ७२४ ॥ एवं पि सुगमं । अणंताणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम कि गहणपाओग्गाओ किमगहणपाओग्गाओ ।। ७२५॥ ___सुगमं । काओ चि गहणपाओग्गाओ काओ चि अगहण पाओग्गाओ ॥ ७२६ ॥ आहारवग्गणाए जहण्णवग्गणप्पहुडि जाव महाखंधवव्ववग्गणे त्ति ताव एवाओ अणंताणंतपवेसियवग्गणाओ त्ति एत्थ सुते घेत्तवाओ। तत्थ आहार तेज-मासा-मण. कम्मइयवग्गणाओ गहणपाओग्गाओ अवसेसाओ अगहणपाओग्गाओ त्ति घेत्तव्वं । तासिमणताणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलववववग्गणाणमुवरिमाहारदव्ववग्गणा णाम ॥७२७ ॥ परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा क्या ग्रहणप्रायोग्य होती हैं या क्या अग्रहणप्रायोग्य होती हैं ॥७२३॥ यह सूत्र सुगम है । अग्रहणप्रायोग्य होती हैं । ७२४।। यह सूत्र भी सुगम है। अनन्तानन्तप्रदेशी परमाणपुदगलद्रव्यवर्गणा क्या ग्रहणप्रायोग्य होती हैं या क्या अग्रहणप्रायोग्य होती हैं ॥७२५॥ यह सूत्र सुगम है। कोई ग्रहणप्रायोग्य होती हैं और कोई अग्रहणप्रायोग्य होती हैं ।।७२६ । आहारवर्गणाकी जघन्य वर्गणासे लेकर महास्कन्धद्रव्यवर्गणा तक ये सब अनन्तानन्तप्रदेशी वर्गणायें हैं इस प्रकार यहाँ सूत्र में ग्रहण करना चाहिए। उनमेंसे आहारवर्गणा, तेजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा ये ग्रहणप्रायोग्य हैं, अवशेष अग्रहणप्रायोग्य हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिए। उन अनन्तातन्तप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर जो होती है उसकी आहारद्रव्यवर्गणा संज्ञा है ॥७२७॥ ४का० प्रती ' काओ वे गहणपाओग्गाओ काओ वे अगहण-' इति पाठ | For Private & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education International

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