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५, ६, ७३२ )
बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया।
( ५४७
आहारसरीरवग्गणाए अंतो काओ चि वग्गणाओ ओरालियसरीरपाओग्गाओ काओ चि वेउव्वियसरीरपाओग्गाओ काओ चि आहारसरीरपाओग्गाओ। एवमाहार सरीरवग्गणा तिविहा होदि । एविस्से तिविहत्तं कुदो णव्वदे ? उवरिभण्णमाणओगाहणप्पाबहुगादो कज्जभेदण्णहाणववत्तीदो वा। जाणि ओरालिय.वेउविय-आहार सरीराणं पाओग्गाणि दव्वाणि ताणि धेत्तण पाविऊण ओरालिय वेउब्विय-आहारसरीरत्ताए ओरालिय वेउविय-आहारसरीराणं सरूवेण ताणि परिणामेदूण परिणमाविय जेहि सह परिणमंति बंधं गच्छंति जीवा ताणि दव्वाणि आहारदव्ववग्गणा णाम । जदि एदेसि तिण्णं सरीराणं वग्गणाओ ओगाहणभेदेण संखाभेदेण च भिण्णाओ तो आहारदव्ववग्गणा एक्का चेवे ति किमळं उच्चदे ? ण, अगहणवग्गणाहि अंतराभावं पड़च्च तासिमेगत्तवएसादो । ण च संखाभेदो असिद्धो, उवरिभण्णमागअप्पाबहुएणेव तस्स सिद्धीदो।
आहारदव्ववग्गणाणमुवरिमगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७३१ ॥ एवेण अगहणवग्गणावट्ठाणपदेसो परूविदो। अगहणदव्ववग्गणा णाम का ॥ ७३२ ।।
आहारशरीरवर्गणाके भीतर कुछ वर्गणायें औदारिकशरीरके योग्य हैं, कुछ वर्गणायें वैक्रियिकशरीरके योग्य हैं और कुछ वर्गणायें आहारकशरीरके योग्य हैं। इस प्रकार आहारशरी रवर्गणा तीन प्रकार की है।
शंका-- यह तीन प्रकारकी है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-- आगे कहे जानेवाले अवगाहना अल्पबहुत्वसे जाना जाता है। अथवा अन्यथा कार्यभेद नहीं बन सकता है इससे जाना जाता है कि वह तीन प्रकारकी है।
जो औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीरके योग्य द्रव्य हैं उन्हें ग्रहण कर अर्थात् प्राप्तकर औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीररूपसे अर्थात् औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके आकारसे उन्हें परिणामकर जिनके साथ जीव परिणमन करते हैं अर्थात् बन्धको प्राप्त होते हैं उन द्रव्योंकी आहारद्रव्यवर्गणा संज्ञा है।
शंका-- यदि तीन शरीरोंकी वर्गणायें अवगाहनाके भेदसे और संख्याके भेदसे अलग अलग हैं तो आहारद्रव्यवर्गणा एक ही है ऐसा किसलिए कहते हैं।
समाधान-- नहीं, क्योंकि, अग्रहणवर्गणाओंके द्वारा अन्तरके अभावकी अपेक्षा इन वर्गणाओंके एकत्वका उपदेश दिया गया है । और संख्याभेद असिद्ध नहीं है, क्योंकि, आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्वसे ही उसकी सिद्धि होती है।
आहार द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा है। ७३१ ।
इस सूत्रद्वारा अग्रहणद्रव्यवर्गणाके अवस्थानके प्रदेशका कथन किया है। अग्रहणद्रव्यवर्गणा क्या है । ७३२ ।
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